डॉ डी पी शर्मा के लोकतंत्र में राजनीतिक एवं प्रशासनिक सुधारों के मॉडल की शुरुआत राजस्थान से! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया था बनाकर मॉडल
डॉ डी पी शर्मा |
राजस्थान में हाल ही में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा सलाहकारों को नियुक्त किया गया हैं। इन सलाहकारों में से 3 राजनीतिक व्यक्ति हैं और शेष पूर्व रिटायर्ड प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी। इस समय देश और दुनिया में जिस तरह का समय चल रहा हैं उसे देखते हुए हर देश को सरकार और जनता के बीच सकारात्मक सामंजस्य बैठाने की बहुत ज़रूरत हैं। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिकदेश हैं और इस देश की मिशालें देश दुनिया के चलते बड़े सभी देश मान रहे हैं। भारत का पिछले कुछ सालों में विश्व मानचित्र पटल पर जो नाम हुआ हैं और जिस तरह से अन्य देश भारत से राय लेकर काम करने मी सोच रखते हैं । ये भारत के लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं हैं। लेकिन ये उपलब्धियाँ ऐसे ही झोली में आकर नहीं गिरती हैं। इसके पीछे बहुत स्वस्थ्य और मज़बूत और कर्तव्यनिष्ट लोगो की बहुत अच्छी टीम कम करती है और इनके कार्यवाहियों से सकारात्मक परिणाम सबके सामने आते हैं। लोकतांत्रिक प्रणाली में सबको साथ लेकर, सभी के साथ सामंजस्य बैठाकर चलना बहुत मुश्किल कार्य माना जाता हैं। लेकिन कुछ बुद्धिजीवियों के बदौलत ये काम बहुत आसान हो जाता हैं।उनके द्वारा दिये फार्मूले या यूं कहें सिस्टम बनाकर चलने से ये सहजता के साथ सकारात्मक परिणाम भी देने लगते हैं।भारत की राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार के लिए न केवल नीति निर्माताओं से बल्कि प्रतिबद्ध नागरिकों से भी निरंतर प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।
ऐसा ही एक सुझाव डॉ डी पी शर्मा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ईमेल के माध्यम से भेजा था। और पिछले दिनों राजस्थान में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के सलाहकारों की नियुक्ति भी इसी सुझाव का परिणाम है। उल्लेखनीय हैं कि डॉ डी पी शर्मा बहुत ही गहन चिंतक और वैज्ञानिक हैं साथ ही राष्ट्रहित में होने वाले कई विषयों और मुद्दों पर अपनी राय बेबाक़ी के साथ रखते हैं और प्रधानमंत्री मोदी इनके इसी अन्दाज़ और विशेषता को देखते हैं और इनकी बातों को सुनते भी हैं और धरातल पर लागू भी करते हैं। इससे पहले भी उनकी सलाह से ही 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका दिवस के रूप में भारत में मनाए जाने की शुरुआत हुई थी। भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्रशासनिक एवं राजनीतिक सुधारों की सामयिक विवेचना और नवीन सलाहकारी मॉडल कैसा हो? इस संबंध में अंतर्राष्ट्रीय डिजिटल डिप्लोमेट एवं संयुक्त राष्ट्र से जुड़े प्रोफेसर डीपी शर्मा के एक संपादकीय लेख को प्रकाशित किया था और उसका विस्तृत ब्यौरा भी पत्र के माध्यम से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को भी भेजा। इस मॉडल की क्रियान्विति राजस्थान में हाल ही में मुख्यमंत्री की सलाह के लिए गठित पांच लोगों की कमेटी के रूप में देखी जा सकती है। राजस्थान के मुख्यमंत्री की सलाह के लिए अभी हाल में एक पांच सदस्यीय कमेटी गठित की गई है जिसमें तीन राजनीतिक विशेषज्ञ (राजेंद्र सिंह राठौड़, प्रभु लाल सैनी, राव राजेंद्र सिंह)और एक सेवा निवृत भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं एक भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी को पंच प्रधान वाली पांच सदस्यीय कमेटी में स्थान दिया गया है। आपको बता दें कि प्रोफेसर शर्मा ने अपने संपादकीय लेख में इसी राजनीतिक एवं प्रशासनिक सुधार मॉडल एवं उसकी पंचप्रधान वाली विषय विशेषज्ञ कमेटी का विस्तार से जिक्र किया था। डॉ शर्मा ने कहा कि परिवर्तन दुनियां का शाश्वत एवं सतत नियम है और इसी नियम को ध्यान में रख कर मूल सिद्धांतों की री-इंजीनियरिंग के लिए यदि अग्रलिखित सुझाव अमल में लाये जाएं तो सरकारी एवं प्रशासनिक तंत्र के मॉडल को और अधिक प्रभावी, सफल एवं जवाबदेह बनाया जा सकता है: विषय विशेषज्ञ एवं नागरिक सेवा के लोगों का भारत के प्राचीन राजनीतिक एवं प्रशासनिक तंत्रों में पंच प्रधानों के रूप बहुत बड़ा महत्व रहा है यानी पंचप्रधानों के निर्णय को ईश्वरीय निर्णय समान माना गया है / मगर आजादी के बाद हमने उधार के राजनीतिक, विधायी एवं प्रशासनिक तंत्रों में इसको सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र तक की सीमित करके रख दिया। यदि मंत्री और प्रशासनिक अधिकारियों या मुख्यमंत्री/ प्रधानमंत्री वह प्रशासनिक अधिकारियों के बीच में एक तंत्र विषय विशेषज्ञों (दो विषय विशेषज्ञ विशिष्ट क्षेत्र जैसे शिक्षा/तकनीकी/चिकित्सा/वित्त से, दो विषय विशेषज्ञ कानूनी क्षेत्र से एवं एक विषय विशेषज्ञ समाज या नागरिक सेवा से) के पंचप्रधान तंत्र को जोड़ दिया जाए तो सरकारों का संचालन और अधिक प्रभावी हो सकता है। अक्सर यह देखा गया है कि ना तो मंत्री और न ही प्रशासनिक अधिकारी उस क्षेत्र के विशेष विशेषज्ञ होते हैं जैसे विज्ञान, कृषि, शिक्षा मगर योजनाएं वही बनाते हैं। ऐसी स्थिति में सरकारी योजनाएं के सफल क्रियान्वन एवं संचालन पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। मंत्री, पंच प्रधान एवं प्रशासनिक अधिकारियों के इस त्रिआयामी तंत्र से इस समस्या को न केवल सुलझाया जा सकता है वल्कि विषय विशेषज्ञता के साथ जनता में सरकार के प्रति संतोष एवं विश्वास को भी बढ़ाया जा सकता है। डॉ शर्मा सुझाव देते हैं कि आइए हम अतीत के थके हुए राजनीतिक, प्रशासनिक एवं आर्थिक मॉडलों से आगे बढ़ें और लोकतंत्र के लिए मानव-केंद्रित भविष्य को अपनाएं। यह वह पीढ़ी हो जो लोकतांत्रिक भागीदारी की लौ को फिर से प्रज्वलित करे, और एक ऐसी शासन प्रणाली का निर्माण करे जो वास्तव में लोगों की, लोगों द्वारा और लोगों के लिए हो। ऐसा ही होगा विकसित भारत और ऐसा ही होगा आदर्शों वाला भारत। डॉ शर्मा आगे कहते हैं कि तुरंत न्याय की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी एवं जबाव देह बनाने के साथ-साथ सामूहिक जिम्मेदारी को स्थापित करने के लिए दो कानूनविद, दो प्रशासनिक अधिकारी एवं एक विषय विशेषज्ञ को सामान्य सेवा से लेकर एक ऐसा तंत्र बनाया जा सकता है जो जटिल न्यायिक प्रक्रिया से पूर्व तुरंत कार्रवाई के लिए निर्णय दे सके और उसकी क्रियान्विति करा सके। जहां तक अतिरिक्त आर्थिक बोझ का सवाल है तो इसमें पश्चिमी देशों की तर्ज पर सेवानिवृत्ति लोगों की सेवाएं या अवैतनिक सेवाएं भी ली जा सकती हैं जिन्हें सिर्फ अल्प मानदेय और मामूली सुविधाओं के अतिरिक्त और अधिक खर्च करने की आवश्यकता नहीं है । यह तंत्र कम से कम असफल परियोजनाओं एवं अप्रभावी कार्यक्रमों को प्रभावी एवं सफल बनाने के लिए बेहतर विकल्प हो सकता है/ आज हजारों विषय विशेषज्ञ देश में अवैतनिक सेवाएं देने के लिए तैयार हो सकते हैं/ इस प्रकार सामूहिक जवाबदेही के तंत्र से निर्णय लेने वाले व्यक्तिगत के व्यक्तिगत खतरों को भी कम किया जा सकता है। डॉ शर्मा द्वारा सुझाए गए अन्य सुझाव भी इस प्रकार हैं- सहभागी लोकतंत्र: निरंतर नागरिक जुड़ाव को सुनिश्चित करने एवं एक नया तंत्र बनाने के लिए आवधिक चुनावों के साथ आगे बढ़ा जा सकता है। इसमें विचार-विमर्श करने वाली सभाएं, नागरिक जूरी और समुदाय की जरूरतों को सीधे संबोधित करने के लिए स्थानीय परिषदों को सशक्त बनाना शामिल हो सकता है। विकेंद्रीकरण: केंद्रीकृत सत्ता संरचनाओं को लचीला बनाकर और विकेंद्रित निर्णय लेने का अधिकार देकर क्षेत्रीय और स्थानीय स्तरों पर सरकारी तंत्र को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है ताकि विविध समुदायों की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप अधिक प्रतिक्रियाशील नीतियों की अनुमति प्रदान की जा सकें। पारदर्शिता और जवाबदेही: खुलेपन और जवाबदेही की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए अधिकारियों द्वारा सवालों के जवाब देने और अपने निर्णयों को समझाने के लिए जनता और सरकार के बीच एक तंत्र बनाया जा सकता है। इसके लिए मजबूत भ्रष्टाचार विरोधी उपायों और सूचना कानूनों तक पहुंच की भी आवश्यकता होगी। प्रौद्योगिकी की शक्ति का उपयोग: नागरिक भागीदारी बढ़ाने, हाशिए पर रहने वाले समुदायों को सशक्त बनाने और सरकारी दक्षता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी की शक्ति का उपयोग और अधिक बढ़ाया जा सकता है। लेकिन डिजिटल विभाजन और हेरफेर की संभावना से भी सावधान रहने की आवश्यकता होगी ताकि तकनीक को लोकतंत्र की सेवा का हथियार बनाया जा सके ना कि कमजोरी। नीति कल्याण पर केंद्रित: सकल घरेलू उत्पाद जैसे अमूर्त आंकड़ों से ध्यान हटाकर स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता और सामाजिक न्याय सहित मानव कल्याण के ठोस उपायों पर ध्यान केंद्रित कर इसके लिए नीति निर्माण के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो इन मुद्दों की परस्पर संबद्धता पर विचार करे। डॉ शर्मा कहते हैं कि इस मॉडल को लागू करने के लिए राजनीति और प्रशासन के बारे में हमारे सोचने के तरीके में आमूल-चूल बदलाव की आवश्यकता होगी। यह नियंत्रण छोड़ने, भागीदारी प्रक्रियाओं को अपनाने और सफलता को केवल आर्थिक संकेतकों से नहीं, बल्कि जिन लोगों की हम सेवा कर रहे हैं उनके जीवन के अनुभवों से मापने की जरूरत है। यह केवल सुशासन का अभ्यास नहीं है; यह लोकतंत्र की आत्मा के लिए लड़ाई है। ध्रुवीकरण और गलत सूचना के युग में, विश्वास को पुनः प्राप्त करने के लिए नागरिकों को यह दिखाना आवश्यक है कि उनकी आवाज़ मायने रखती है, कि उनकी ज़रूरतें सुनी जाती हैं, और अधिक न्यायसंगत भविष्य को आकार देने में उनकी भागीदारी महत्वपूर्ण है। तकनीकी छेड़छाड़ का समय ख़त्म हो गया है। अब समय आ गया है कि लोगों को हमारी राजनीतिक और प्रशासनिक प्रणालियों के केंद्र में रखा जाए और एक ऐसे लोकतंत्र का निर्माण किया जाए जो वास्तव में सभी के लिए सबका साथ, सबका विकास,और सब का विश्वास मंत्र के साथ काम कर सके। भारत के विविध राजनीतिक परिदृश्य में सुधार के लिए एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता है। आज भूमंडलीकरण बदले हुए परिदृश्य में एक एकल मॉडल की तलाश के बजाय, द्विआयामी, त्रिआयामी या बहु-आयामी रणनीति अपनाना अधिक प्रभावी हो सकता है। सरकार और नौकरशाही में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाना: खुली डाटा पहल, नीति निर्माण में सार्वजनिक भागीदारी और मजबूत नागरिक प्रतिक्रिया तंत्र लोकतांत्रिक निगरानी को मजबूत कर सकते हैं और सरकार में विश्वास को और अधिक बढ़ा सकते हैं। भारत का भविष्य अपने लोगों की गतिशीलता को अपनाने और उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप अपनी शासन संरचनाओं की पुनर्कल्पना करने में निहित है। कुशल नौकरशाही, समावेशी जुड़ाव और उत्तरदायी नेतृत्व को प्राथमिकता देकर, भारत न केवल अपने आकार के कारण, बल्कि तेजी से बदलती दुनिया में अनुकूलन और तेजी से आगे बढ़ाने की अपनी क्षमता के कारण एक मॉडल लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में उभर सकता है। |
डॉ डी पी शर्मा के लोकतंत्र में राजनीतिक एवं प्रशासनिक सुधारों के मॉडल की शुरुआत राजस्थान से! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया था बनाकर मॉडल
Reviewed by Glocal Times
on
January 21, 2024
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